गुरुवार, 22 सितंबर 2016

नियम नहीं, "भाव" महत्वपूर्ण-

कुछ लोग पूजा-पाठ में नियमों और विधि-विधानों को लेकर बहुत आग्रही होते हैं। पूजा-पाठ, कर्मकाण्ड इत्यादि में नियमों और विधि-विधानों का यथोचित ध्यान रखा जाना चाहिए किन्तु उसके पालन के लिए उद्धिग्न होना उचित नहीं है। मेरे देखे देवपूजा में यदि कोई बात अत्यंत महत्वपूर्ण है तो वह है- "भाव"। मैं तो यही कहूंगा कि पूजा में नियम भले टूटें किन्तु "भाव" नहीं टूटना चाहिए। पूर्ण श्रद्धा एवं समर्पित भाव से की गई पूजा बिना किसी विशेष नियम और विधि-विधान के भी स्वीकार होती है। हमारे शास्त्रों में भी मानस पूजा को अत्यंत श्रेष्ठ और शीघ्र फ़लदायी बताया गया है। मानस पूजा है क्या...? मानस पूजा केवल "भाव" साधने की प्रक्रिया मात्र है। अत: जब भी पूजा करें "भाव" पर विशेष ध्यान दें।

मंगलवार, 20 सितंबर 2016

"स्वभाव" ही "प्रभाव" की कुंजी है-

"स्वभाव" व "प्रभाव" अन्तर्संबंधित हैं, दोनों एक दूसरे जुड़े हुए हैं। जैसा जिसका "स्वभाव" होता है; वैसा ही उसका "प्रभाव" पड़ता है। अधिकांश व्यक्ति जीवन भर इसी प्रयास में लगे रहते हैं कि कैसे उनका "प्रभाव’ बढ़े किन्तु इस आपाधापी में वे अपने "स्वभाव" की उपेक्षा कर देते हैं। मैं निवेदन करूं कि अपना "स्वभाव" बदलिए आपका "प्रभाव" स्वयमेव परिवर्तित हो जाएगा। मेरे देखे "स्वभाव" ही "प्रभाव" की कुंजी है।

-ज्योतिर्विद पं. हेमन्त रिछारिया

"आत्मा; परमात्मा का सब-स्टेशन है"

 जिस प्रकार बड़े बड़े स्टेशनों से पहले उसी शहर का एक छोटा सब-स्टेशन होता है, जैसे भोपाल का हबीबगंज, जबलपुर का मदन महल, मुम्बई का कल्याण इत्यादि जो होता उसी शहर में है लेकिन उस शहर में होते हुए भी उस शहर से थोड़ा अलग होता किन्तु उसकी महत्ता इस बात से होती है कि उसके आते ही यात्रीगण को इतना विश्वास हो जाता है कि मुख्य स्टेशन अब दूर नहीं है; बस अब आने ही वाला है। मेरे देखे आत्मा भी उस परमात्मा का ऐसा ही एक सब-स्टेशन है जिसके प्राप्त होते ही यह पता चलने लगता है कि परमात्मा अब अधिक दूर नहीं है, बस आने ही वाला है इसीलिए तो बुद्ध ने केवल आत्मा की बात की क्योंकि आत्मा के जानते ही परमात्मा की प्रतीती स्वमेव होने लगती है; करनी नहीं पड़ती।

-ज्योतिर्विद पं. हेमन्त रिछारिया