रविवार, 30 अप्रैल 2017

वस्तुएं आवश्यकता की पूर्ती करने वाली हों, अहंकार की नहीं-

कल मैं एक यात्रा पर था। मैंने ट्रेन में अपने आसपास देखा तो पाया लगभग सभी यात्रियों के पास मोबाईल था। अधिकांश के पास बड़े मंहगे मोबाईल हैण्डसेट थे वहीं कुछ के पास सामान्य। आश्चर्य की बात तो यह थी कि बात दोनों ही से एक समान हो रही थी। मेरे देखे हमारे दैनिक जीवन की वस्तुएं हमारी आवश्यकता की पूर्ती करने वाली होना चाहिए ना कि हमारे अहंकार की पूर्ती करने वाली, यही धार्मिकता का लक्षण है।

-ज्योतिर्विद पं. हेमन्त रिछारिया

आईए परमधन खोजें-

नोटबन्दी के निर्णय को यदि हम आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य में देखें तो इस फ़ैसले ने हमें आईना दिखाया है। आज हमें उस तथाकथित मूल्यवान समझे जाने वाले धन की हकीकत का पता चला है जिसके लिए हम कभी-कभी अपनी आत्मा तक को दांव पर लगा देते हैं। एक कागज़ के पुर्ज़े पर लिखे कुछ शब्दों से वे कागज़ के टुकड़े महज़ कागज़ ही बनकर रह गए जिनके लिए हम सब दिन-रात आपाधापी कर रहे थे। ज़रा सोचिए भला हम इस धन के लिए अपने जीवन को खपाए दे रहे थे जिसे एक व्यक्ति; एक आदेश "व्यर्थ" और मूल्यहीन बना सकता है! यदि हां तो हमसे अधिक मूढ़ इस जगत में खोजना मुश्किल है। आईए अब थोड़ा उस परमधन की खोज करें जिसे संसार की कोई शक्ति मूल्यहीन नहीं बना सकती। वह धन हमें जन्म से मिला ही हुआ है बस उस तिजोरी को खोलना है जिसमें वह धन है। वह तिजोरी खुलती है- ध्यान व प्रेम से, फिर प्राप्त होता है वह परमधन जिसके बारे में मीराबाई कहती हैं-"राम रतन धन पायो।"

-ज्योतिर्विद पं. हेमन्त रिछारिया