सोमवार, 22 मई 2017

महाभारत का महागणित

महाभारत का नाम सुनते ही जो सबसे पहली बात ध्यान में आती है वह यह कि इस युद्ध में लाखों लोगों ने अपने प्राणों की आहूति दी थी। कुछ विद्वानों के अनुसार तो महाभारत के युद्ध में करोड़ों सैनिक मारे गए थे। हालांकि उस काल में इस देश की जनसंख्या के अनुपात में यह बात अतिश्योक्ति ही लगती है लेकिन एक बात निश्चित है कि महाभारत के युद्ध में मारे गए सैनिकों की कोई प्रामाणिक संख्या आज तक बताई नहीं जा सकी लेकिन सामरिक ग्रन्थों में अक्षौहिणी सेना का जो वर्णन है उस आधार पर आज मैं आपको महाभारत युद्ध में मारे गए सैनिकों की प्रामाणिक संख्या बताने जा रहा हूँ। यह संख्या मैंने गणना के आधार प्राप्त की है। आप स्वयं भी इसकी गणना कर सकते हैं।
जैसा कि आपको विदित है महाभारत के युद्ध में पाण्डवों के पास 7 अक्षौहिणी सेना व कौरवों के पास 11 अक्षौहिणी सेना थी। आईए जानते हैं कि 1 अक्षौहिणी सेना में क्या-क्या होता है।
1 अक्षौहिणी सेना-
----------------------
महाभारत काल में सेना की सबसे छोटी ईकाई को "पती" कहते थे।
1 पती के अन्तर्गत होता था-
1 रथ, 1 हाथी, 3 घोड़े एवं 5 पैदल सैनिक।
3 पति को 1 सेनामुख कहा जाता था अर्थात्...
3 पति = 1 सेनामुख
3 सेनामुख = 1 गुल्म
3 गुल्म = 1 गण
3 गण = 1 वाहिनी
1 वाहिनी = 1 पृतना
3 पृतना = 1 चमू
3 चमू = 1 अनीकिनी
10 अनीकिनी = 1 अक्षौहिणी सेना
अत: उपर्युक्त गणना के आधार पर 1 अक्षौहिणी सेना में होते हैं-
रथ संख्या-  21,870
हाथी-  21,870
घोड़े-  65,610
पैदल सैनिक- 1,09,350
अत: इस आधार पर महाभारत के युद्ध में प्रयुक्त हुई कुल 18 अक्षौहिणी सेना में थे-
कुल रथ- 3,93,660
कुल हाथी- 3,93,660
कुल घोड़े- 11,80,980
पैदल सैनिक- 19,68,300
अब यदि पैदल सैनिक+रथी+घुड़सवार+गजसवार इन सभी को सम्मिलित किया जाए तो 18 अक्षौहिणी सेना के कुल सैनिकों व योद्धाओं की संख्या बनती है-

47 लाख 43 हज़ार 920 योद्धा....ये सभी महाभारत के युद्ध में मारे गए थे।


निवेदन- उपर्युक्त संख्या अक्षौहिणी सेना की व्यवस्था के आधार पर प्राप्त हुई है जो पूर्णत: सत्य तो नहीं किन्तु किसी भी अतिश्योक्तिपूर्ण संख्या को परखने की कसौटी अवश्य है।

-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र (म.प्र.)

रविवार, 21 मई 2017

भारत का नामकरण


आप सभी को विदित है हमारे देश का नाम "भारत" चक्रवर्ती सम्राट महाराज भरत के नाम पर पड़ा है किन्तु क्या आप यह जानते हैं कि ये भरत कौन थे? निश्चय ही आपका उत्तर होगा "दुष्यन्त-शकुन्तला के पुत्र", लेकिन यह असत्य है। ये बात सही है कि दुष्यन्त-शकुन्तला के पुत्र का नाम भी भरत था किन्तु इन भरत के नाम पर इस देश का नाम भरत नहीं रखा गया। इस देश का नाम भारत जिन चक्रवर्ती सम्राट महाराज भरत के नाम पर रखा गया वे ऋषभदेव-जयन्ती के पुत्र थे। ये वही ऋषभदेव हैं जिन्होंने जैन धर्म की नींव रखी। ऋषभदेव महाराज नाभि व मेरूदेवी के पुत्र थे। महाराज नाभि और मेरूदेवी की कोई सन्तान नहीं थी। महाराज नाभि ने पुत्र की कामना से एक यज्ञ किया जिसके फ़लस्वरूप उन्हें ऋषभदेव पुत्र रूप में प्राप्त हुए। ऋषभदेव का विवाह देवराज इन्द्र की कन्या जयन्ती से हुआ। ऋषभदेव व जयन्ती के सौ पुत्र हुए जिनमें सबसे बड़े पुत्र का नाम "भरत" था। भरत चक्रवर्ती सम्राट हुए। इन्हीं चक्रवर्ती सम्राट महाराज भरत के नाम पर इस देश का नाम "भारत" पड़ा। इससे पूर्व इस देश का नाम "अजनाभवर्ष" या "अजनाभखण्ड" था क्योंकि महाराज नाभि का एक नाम "अजनाभ" भी था। अजनाभ वर्ष जम्बूद्वीप में स्थित था, जिसके स्वामी महाराज आग्नीध्र थे। आग्नीध्र स्वायम्भुव मनु के पुत्र प्रियव्रत के ज्येष्ठ पुत्र थे। प्रियवत समस्त भू-लोक के स्वामी थे। उनका विवाह प्रजापति विश्वकर्मा की पुत्री बर्हिष्मती से हुआ था। महाराज प्रियव्रत के दस पुत्र व एक कन्या थी। महाराज प्रियव्रत ने अपने सात पुत्रों को सप्त द्वीपों का स्वामी बनाया था, शेष तीन पुत्र बाल-ब्रह्मचारी  थे। इनमें आग्नीध्र को जम्बूद्वीप का स्वामी बनाया गया था। श्रीमदभागवत (५/७/३) में कहा है कि-
"अजनाभं नामैतदवर्षभारतमिति यत आरभ्य व्यपदिशन्ति।"
इस बात के पर्याप्त प्रमाण हमें शिलालेख एवं अन्य धर्मंग्रन्थों में भी मिलते हैं। अग्निपुराण में स्पष्ट लिखा है-
"ऋषभो मरूदेव्यां च ऋषभाद् भरतोऽभवत्।
ऋषभोऽदात् श्री पुत्रे शाल्यग्रामे हरिंगत:,
भरताद् भारतं वर्ष भरतात् सुमतिस्त्वभूत॥"
वहीं स्कन्द पुराण के अनुसार-
"नाभे: पुत्रश्च ऋषभ ऋषभाद भरतोऽभवत्।
तस्य नाम्ना त्विदं वर्षं भारतं चेति कीर्त्यते॥"
(माहेश्वर खण्ड)
इसका उल्लेख मार्कण्डेय पुराण व भक्तमाल आदि ग्रन्थों में भी मिलता है। अत: दुष्यन्त-शकुन्तला के पुत्र भरत के नाम पर इस देश का नाम "भारत" होना केवल एक जनश्रुति है सत्य नहीं।

-ज्योतिर्विद् पं हेमन्त रिछारिया