मंगलवार, 7 अगस्त 2018

शिव को क्या व कैसे चढ़ाएं



हमारे सनातन धर्म की पूजा पद्धति में पुष्प अर्पण का विशेष महत्त्व है। फ़िर चाहे वे पुष्प माला के रूप में हों, अर्चन के रूप में हों या पुष्पांजलि के रूप में। वैसे तो पूर्ण श्रद्धाभाव से अर्पित किए गए
पुष्प ईश्वर स्वीकार कर लेते हैं किन्तु हमारे शास्त्रों में किस देव को कौन से पुष्प चढ़ाए जाएं यह निर्देशित किया गया है। साथ ही साथ यह भी बताया गया है कि पुष्प चढ़ाने की सही विधि कौन सी है। आईए इस पवित्र श्रावण में मास में हम जानते हैं कि चन्द्रमौलिश्वर भगवान शिव को कौन से पुष्प अर्पित किए जाने चाहिए-
भगवान को शिव को अर्पित किए जाने वाले पुष्प-
भगवान शिव को श्वेतार्क मदार अर्थात् सफ़ेद अकाव एवं बिल्वपत्र बहुत प्रिय है। श्रावण मास में भगवान शिव को सफ़ेद अकाव के फूल की माला अर्पित करने से विशेष लाभ होता है। इसके अतिरिक्त भगवान शंकर को नीला अकाव, कनेर, धतूरे का पुष्प, शिव कटास, अपराजिता के पुष्प, शमी पुष्प, शंखपुष्पी, चमेली, नागकेसर, नागचम्पा, खस, तगर्म गूलर, पलाशम केसर, कमल आदि पुष्प भी प्रिय हैं।
शिवजी को नहीं चढाए जाते ये पुष्प-
शिवजी की पूजा में कुछ पुष्पों का चढ़ाया जाना शास्त्रसम्मत नहीं है। वे हैं- कदम्ब, केवड़ा, केतकी, शिरीष, अनार, जूही आदि।
पुष्प अर्पण करने की सही विधि-
किसी भी देवी-देवता को पुष्प अर्पित करने की एक खास विधि होती है। शास्त्रानुसार उसी विधि अनुसार देवी-देवताओं को पुष्प अर्पण करना चाहिए। पुष्प सदैव जिस अवस्था में खिलते हैं उसी अवस्था में अर्पित किए जाने चाहिए अर्थात् पुष्प का मुख आकाश की ओर होना चाहिए। वहीं दूर्वा सदैव अपने ओर करके अर्पित की जानी चाहिए एवं बिल्व पत्र सदैव नीचे मुख रखते हुए चढ़ाना चाहिए। पुष्प अर्पित करने से पूर्व उन्हें सूंघना नहीं चाहिए। कीड़े वाले पुष्प भगवान को अर्पित नहीं किए जाते। जिन पुष्पों में पैर छू गया हो ऐसे पुष्प भी भगवान को अर्पित नहीं किए जाते। भगवान को बासी पुष्प अर्पित नहीं किए जाते। शास्त्रानुसार माली के घर के फूलों को कभी बासी नहीं माना जाता, अत: माली से फूल लेते समय बासी पुष्प का विचार नहीं करना चाहिए।

-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र
सम्पर्क: astropoint_hbd@yahoo.com

सोमवार, 6 अगस्त 2018

"आस्तिक मुनि की दुहाई" क्यों लिखते हैं..!


हमारे हिन्दू समाज में आज भी कई ऐसी पौराणिक मान्यताएं प्रचलित हैं जिनसे व्यक्ति अपने आप को सुरक्षित महसूस करता है। सर्प का नाम सुनते ही जनमानस में भयंकर भय व्याप्त हो जाता है। सर्प को काल(मृत्यु) का प्रत्यक्ष स्वरूप माना जाता है। सर्पदंश होने पर आज भी ग्रामीण अंचल में झाड़-फ़ूंक आदि सहारा लिया जाता है जो सर्वथा गलत है। सर्पदंश जैसी विकट परिस्थिति में झाड़-फ़ूंक व टोने-टोटके करने के स्थान पर शीघ्रातिशीघ्र चिकित्सक के पास जाना चाहिए। बहरहाल, आज हम प्राचीन समय में प्रचलित एक परम्परा के बारे में अपने पाठकों को अवगत कराएंगे। आपने यदा-कदा घरों के बाहरी दीवार "आस्तिक मुनि की दुहाई" नामक वाक्य लिखा देखा होगा। ग्रामीण अंचलों में इस वाक्य को घर की बाहरी दीवार पर लिखा हुआ देखना आम बात है। लेकिन क्या आप जानते हैं इस वाक्य को घर के बाहरी दीवारों पर क्यों लिखा जाता है! यदि नहीं, तो आज हम आपको इसकी पूर्ण जानकारी देंगे।
"आस्तिक मुनि की दुहाई" नामक वाक्य घर की बाहरी दीवारों पर सर्प से सुरक्षा के लिए लिखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस वाक्य को घर की दीवार पर लिखने से उस घर में सर्प प्रवेश नहीं करता। इस मान्यता के पीछे एक पौराणिक कथा है।
कलियुग के प्रारम्भ में जब ऋषि पुत्र के श्राप के कारण राजा परीक्षित को तक्षक नाग ने डस लिया जिससे उनकी मृत्यु हो गई। जब यह बात राजा परीक्षित के पुत्र जन्मेजय को पता चली तो उन्होंने क्रुद्ध होकर अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए इस संसार से समस्त नाग जाति का संहार करने के लिए "सर्पेष्टि यज्ञ" का आयोजन किया। इस "सर्पेष्टि यज्ञ" के प्रभाव के कारण संसार के कोने-कोने से नाग व सर्प स्वयं ही आकर यज्ञाग्नि में भस्म होने लगे। इस प्रकार नाग जाति को समूल नष्ट होते देख नागों ने आस्तिक मुनि से जाकर अपने संरक्षण हेतु प्रार्थना की। उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर आस्तिक मुनि ने नागों को बचाने से पूर्व उनसे एक वचन लिया कि जिस स्थान पर नाग उनका नाम लिखा देखेंगे उस स्थान में प्रवेश नहीं करेंगे और उस स्थान से सौ कोस दूर रहेंगे। नागों ने अपने संरक्षण हेतु आस्तिक मुनि को जब यह वचन दिया तब आस्तिक मुनि ने जन्मेजय को समझाया। आस्तिक मुनि के कहने पर जन्मेजय ने "सर्पेष्टि यज्ञ" बन्द कर दिया। इस प्रकार आस्तिक मुनि के हस्तक्षेप के कारण नाग जाति का आसन्न संहार रुक गया। इस कथा के अनुसार ही ऐसी मान्यता प्रचलित है कि आस्तिक मुनि को दिए वचन को निभाने के लिए आज भी सर्प उस स्थान में प्रवेश नहीं करते जहां आस्तिक मुनि का नाम लिखा होता है। इस मान्यता के कारण ही अधिकांश लोग सर्प से सुरक्षा के लिए अपने घर की बाहरी दीवार पर लिखते हैं-
"आस्तिक मुनि की दुहाई।"

-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
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बुधवार, 1 अगस्त 2018

ब्राह्मणों की आठ श्रेणियाँ



सनातन धर्मानुसार ब्राह्मणों को इस धरती का देवता माना गया है। वहीं शास्त्रानुसार ब्राह्मण भगवान के मुख कहे जाते हैं। ब्राह्मण सदैव वन्दनीय है। ब्राह्मणों का अपमान ब्रह्म दोष का कारक होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ब्राह्मणों की भी श्रीणिया होती हैं। स्कद पुराण के अनुसार ब्राह्मणों की आठ श्रेणिया निर्धारित की गई हैं। आज हम पाठकों के लिए इन आठ श्रेणियों का वर्णन करेंगे-

1. द्विज- जनेऊ धारण करने वाला ब्राह्मण "द्विज" कहलाता है।
2. विप्र- वेद का अध्ययन करने वाला वेदपाठी ब्राह्मण "विप्र" कहलाता है।
3. श्रोत्रिय- जो ब्राह्मण वेद की किसी एक शाखा का छ: वेदांगों सहित अध्ययन कर ज्ञान प्राप्त करता है उसे "श्रोतिय" कहते हैं।
4. अनुचान- जो ब्राह्मण चारों वेदों का ज्ञान प्राप्त कर लेता है उसे "अनुचान" कहा जाता है।
5. ध्रूण- जो ब्राह्मण नित्य अग्निहोत्र व स्वाध्याय करता है उसे "ध्रूण" ब्राह्मण कहते हैं।
6. ऋषिकल्प- जो ब्राह्मण अपनी इन्द्रियों को अपने वश में करके जितेन्द्रिय हो जाता है उसे "ऋषिकल्प" कहते हैं।
7. ऋषि- जो ब्राह्मण श्राप व वरदान देने में समर्थ होता है उसे "ऋषि" कहते हैं।
8. मुनि- जो ब्राह्मण काम-क्रोध से रहित सब तत्वों का ज्ञाता होता है और जो समस्त जड़-चेतन में समभाव रखता हो उसे "मुनि" कहा जाता है।

-ज्योतिर्विद पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र
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