बुधवार, 28 जून 2017

युधिष्ठिर का नारी जाति को श्राप-


महाभारत का प्रसंग है। जब अर्जुन द्वारा अंगराज कर्ण का वध कर दिया गया तब पाण्डवों की माता कुन्ती कर्ण के शव पर उसकी मृत्यु का विलाप करने पहुँची। अपनी माता को कर्ण के शव पर विलाप करते देख युधिष्ठिर ने कुन्ती से प्रश्न किया कि "आप हमारे शत्रु की मृत्यु पर विलाप क्यों कर रहीं है?" तब कुन्ती ने युधिष्ठिर को कहा कि "ये तुम्हारे शत्रु नहीं, ज्येष्ठ भ्राता हैं।" यह सुनकर युधिष्ठिर अत्यन्त दु:खी हुए। उन्होंने माता कुन्ती से कहा कि आपने इतनी बड़ी बात छिपाकर हमें हमारे ज्येष्ठ भ्राता का हत्यारा बना दिया। तत्पश्चात् समस्त नारी जाति श्राप देते हुए युधिष्ठिर बोले "मैं आज से समस्त नारी जाति को श्राप देता हूँ कि वे अब चाहकर भी कोई बात अपने ह्रदय में नहीं छिपा सकेंगी।" जनश्रुति है कि धर्मराज युधिष्ठिर के इसी श्राप के कारण स्त्रियाँ कोई भी बात छिपा नहीं सकतीं।

-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया

सोमवार, 5 जून 2017

ईश्वर को लाभ की दृष्टि से ना देखें

कल निर्जला एकादशी थी। कई श्रद्धालुओं ने निर्जल रहकर व्रत रखा अर्थात् अन्न-जल ग्रहण किए बिना उपवास। मैंने एक मित्र से पूछा कि निर्जला एकादशी का क्या महत्त्व होता है? तो उनका उत्तर था कि इस व्रत को रखने से वर्षभर की एकादशी व्रत का पुण्य प्राप्त हो जाता है। मैं आश्चर्यचकित था कि मनुष्य कितना चतुर है वह परमात्मा की भक्ति भी सांसारिक दृष्टिकोण से करता है। मेरे देखे ईश्वर को कभी लाभ की दृष्टि से नहीं देखना चाहिए। ईश्वर को सदैव प्रेम की दृष्टि से देखना चाहिए। भला ईश्वर की कृपा प्राप्ति के लिए ये हिसाब-किताब उपाय क्यों जब आपकी एक प्रेमासिक्त पुकार ही पर्याप्त है। बुद्ध को तत्व साक्षात्कार उपवास के कारण नहीं हुआ, तब हुआ जब उन्होंने ये सब व्रत त्याग दिए। ईश्वर आपके किए गए व्रतों-कर्मकाण्डों का आधीन नहीं हैं, ईश्वर तो बस आपके प्रेम के आधीन है। अत: ईश्वर के आराधन में प्रेम को प्रमुख रखिए लाभ को नहीं। यहाँ मेरा उद्देश्य किसी की श्रद्धा को आहत करना नहीं अपितु उस श्रद्धा को परिशुद्ध करना है। व्रत, पूजा, नाम जप, तीर्थयात्रा आदि में प्रेम ही केन्द्र में रहे शेष सब परिधि बन जाए तो ही भक्ति अन्यथा सब व्यापार।

-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया

रविवार, 4 जून 2017

उपचार पूजा


पूजा करना सनातन धर्म का अभिन्न अंग है। ईश्वर ने हमें जीवन दिया है, हम उसे कैसे धन्यवाद दें! इसके समाधान हेतु हमारे शास्त्रों ने दैनिक पूजा का विधान बताया है। पूजा करने के विलग-विलग उद्देश्य होते हैं उनमें सर्वश्रेष्ठ व पवित्र उद्देश्य है ईश्वर के प्रति अपना प्रेम व कृतज्ञता ज्ञापित करना। पूजा का तरीका व्यक्ति की श्रद्धा पर निर्भर है लेकिन हमारे शास्त्रों में पूजा करने के कुछ अनिवार्य अंग बताए गए हैं जिन्हें "पंचोपचार","दशोपचार" व "षोडषोपचार" पूजन कहा जाता है। आईए जानते हैं कि इन उपचार पूजनों के अन्तर्गत क्या अनिवार्य हैं।

पंचोपचार पूजन-
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1. गन्ध 2. पुष्प 3. धूप 4. दीप 5. नैवेद्य

दशोपचार-
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1. पाद्य 2. अर्घ्य 3. आचमन 4. स्नान 5. वस्त्र 6. गन्ध 7. पुष्प 8. धूप 9. दीप 10. नैवेद्य

षोडशोपचार-
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1. पाद्य 2. अर्घ्य 3. आचमन 4. स्नान 5. वस्त्र 6. आभूषण 7. गन्ध 8. पुष्प 9. धूप 10. दीप 11. नैवेद्य 12. आचमन 13. ताम्बूल 14. स्तवन पाठ 15.तर्पण 16.नमस्कार

-ज्योतिर्विद पं. हेमन्त रिछारिया 



शनिवार, 3 जून 2017

क्या भूत-प्रेत होते हैं?


भूत-प्रेत का नाम सुनते ही मन में भय व दहशत व्याप्त हो जाती है। तार्किक लोग भूत-प्रेत के अस्तित्व को सिरे से नकारते हैं वहीं कुछ अन्धविश्वासी सामान्य मनोरोगों को भी भूत-प्रेत से जोड़कर देखते हैं। लेकिन क्या सचमुच भूत-प्रेत होते हैं इस प्रश्न का उत्तर शायद ही किसी को संतुष्ट कर पाता हो। आज हम इसी रहस्य को समझने का प्रयास करेंगे। प्रारम्भिक दौर में विज्ञान भूत-प्रेत के अस्तित्व को खारिज करता आया है लेकिन वर्तमान दौर में वह इन्हें एक दिव्य उर्जा के रूप में स्वीकार करने लगा है। हमारे मतानुसार इस रहस्य को विज्ञान कभी भी नहीं जान पाएगा ऐसा इसलिए क्योंकि विज्ञान मशीनी उपकरणों के माध्यम से चेतना को जानने का प्रयास करता है जबकि यह चेतनाएँ जिस एकमात्र उपकरण के माध्यम से जानी जा सकती हैं वह उपकरण है मनुष्य शरीर। हमारा भौतिक शरीर जिसे स्थूल शरीर भी कहा जाता है, कई शरीरों का संग्रहीत रूप है। हमारे स्थूल शरीर के भीतर अन्य शरीरों की पर्तें होती हैं। इन शरीरों को सूक्ष्म शरीर, आकाश शरीर, मनस शरीर, आत्मिक शरीर, ब्रह्म शरीर व निर्वाण शरीर कहा जाता है। जिसे सामान्य भाषा में भूत-प्रेत कहा या समझा जाता है वह वास्तविक रूप में मनुष्य का सूक्ष्म शरीर होता है। इस सूक्ष्म शरीर में मनुष्य की सारी भावनाएँ, मन, स्मृतियाँ व अन्य शरीर संग्रहीत रहते हैं। सामान्य मृत्यु में व्यक्ति का केवल भौतिक या स्थूल शरीर ही नष्ट होता है। सूक्ष्म शरीर आगे की यात्रा के लिए बचा रह जाता है। इसी सूक्ष्म शरीर के कारण मनुष्य को अगला जन्म प्राप्त होता है। यह सूक्ष्म शरीर आवागमन का आधार है। सूक्ष्म शरीर जब तक भौतिक शरीर धारण नहीं कर लेता है तब तक उसकी संसार में स्थिति व उपस्थिति को ही भूत-प्रेत के नाम से जाना जाता है। सरल शब्दों में भूत-प्रेत वास्तव में मनुष्य का सूक्ष्म शरीर ही है। सामान्यत: साधारण जीवात्माएँ मृत्यु के उपरान्त बहुत शीघ्र ही नया जन्म ले लेती हैं लेकिन कुछ असाधारण जीवात्माएँ; जिनमें बहुत श्रेष्ठ जिन्हें हम देवताओं की श्रेणी में रखते हैं और बहुत निकृष्ट जिन्हें हम भूत-प्रेत की श्रेणी में रखते हैं,अपने स्वभावगत कारणों व वासनाओं के कारण नया जन्म लेने में विलम्ब करती हैं। इस काल में ये जीवात्माएँ सूक्ष्म शरीर के रूप में संसार में विद्यमान रहती हैं। कुछ विशेष परिस्थितियों में ये जीवात्माएँ साँसारिक मनुष्यों के सम्पर्क में आकर अपनी उपस्थिति का अहसास भी कराती हैं लेकिन ये बहुत ही असाधारण परिस्थितियों में होता है। जिसे प्रचलित भाषा में बाबा,देव,माता,भूत-प्रेत इत्यादि नामों से जाना जाता है। अक्सर समाज में भूत-प्रेत का भय दिखाकर जनमानस का शोषण किया जाता है। यह सर्वथा अनुचित है। सूक्ष्म शरीर का साँसारिक क्रियाकलापों में हस्तक्षेप बहुत ही असाधारण परिस्थितियों में होता है। अत: ना तो इन सूक्ष्म शरीरों से अत्यधिक भयभीत होने की आवश्यकता है और ना इनके अस्तित्व को सिरे से नकारना ही उचित है।

-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया