गुरुवार, 15 जनवरी 2015

“दान या निवेश....?”

मेरे देखे यदि कोई भी कर्म चाहे वो दान हो; सेवा हो या फिर भक्ति, यदि फ़ल की इच्छा और आकांक्षा से किया जा रहा है तो वह शुद्ध “निवेश” है। फल की अपेक्षा करना व्यापारिक व सांसारिक दृष्टि है, आध्यात्मिक नहीं। जिस व्यक्ति को देने में ही आनन्द महसूस होता है उसी का दान का सार्थक है।

शनिवार, 3 जनवरी 2015

सात शरीर व सात चक्र

ईश्वर,परमात्मा,ब्रह्म,तत्व(जो भी नाम आप देना चाहें) से साक्षात्कार के दो ही मार्ग हैं-ध्यान और प्रेम(भक्ति)। शेष सब सामाजिक व्यवस्थाएं मात्र हैं। हमारे देश में बड़े-बड़े ध्यान योगी और भक्त हुए हैं। जिन्होंने ब्रह्म साक्षात्कार किया है। सभी ने अपने-अपने अनुभव अपने शिष्यों को बताएं भी है। सभी योगी इस बात पर एकमत है कि मानव का स्थूल शरीर ही एकमात्र शरीर नहीं है अन्य शरीर भी हैं। कोई तीन शरीरों की बात कहते हैं, कोई पांच तो कोई सात। आचार्य रजनीश “ओशो” सात शरीरों की चर्चा करते हैं। यह ज़्यादा सटीक मालूम पड़ता हैं क्योंकि कुण्डलिनी जागरण के साधक इस बात को जानते हैं कि कुण्डलिनी सात चक्रों से होकर सहस्रार तक पहुंचती हैं। “ओशो” के अनुसार हर शरीर एक चक्र से संबंधित होता है। ये सात शरीर और सात चक्र हैं-
१. स्थूल शरीर (फ़िज़िकल बाडी)- मूलाधार चक्र
२. आकाश या भाव शरीर (इथरिक बाडी)-स्वाधिष्ठान चक्र
३. सूक्ष्म या कारण शरीर (एस्ट्रल बाडी)-मणिपुर चक्र
४. मनस शरीर (मेंटल बाडी)-अनाहत चक्र
५. आत्मिक शरीर (स्प्रिचुअल बाडी)-विशुद्ध चक्र
६. ब्रह्म शरीर (कास्मिक बाडी)-आज्ञा चक्र
७. निर्वाण शरीर (बाडीलेस बाडी)-सहस्रार
 सामान्य मृत्यु में केवल हमारा स्थूल शरीर ही नष्ट होता है। शेष छः शरीर बचे रहते हैं जिनसे जीवात्मा अपनी वासनानुसार अगला जन्म प्राप्त करती है किंतु महामृत्यु में सभी छः शरीर नष्ट हो जाते हैं फ़िर पुनरागमन संभव नहीं होता। इसे ही अलग-अलग पंथों में मोक्ष,निर्वाण,कैवल्य कहा जाता है।

वेद

विश्व के प्राचीनतम ग्रंथ है वेद। वेद शब्द का अर्थ है-ज्ञान। चार वेद हैं-ऋग्वेद,यजुर्वेद,सामवेद और अथर्ववेद।
ऋग्वेद में देवताओं के आवाहन और स्तुति संबंधी पद्यात्मक मंत्र है जिन्हें “ऋचा” कहते हैं। यजुर्वेद में मुख्यतः यज्ञ की आहुति के समय बोले जाने वाले मंत्र हैं जो “यजुष” कहलाते हैं। सामवेद में यज्ञ के समय सस्वर गाये जाने वाले मंत्र हैं। अथर्ववेद में अनेक विद्याओं और ज्ञान-विज्ञान से संबंधित मंत्र हैं। मंत्र संख्या की दृष्टि से “ऋग्वेद” सबसे बड़ा वेद है। ऋग्वेद में दस (१०) मण्डल हैं। ऋग्वेद में एक हजार पांच सौ अस्सी (१०५८०) ऋचाएं हैं। ऋ़ग्वेद का प्रथम मंत्र अग्नि देवता के लिए है। ऋग्वेद की सर्वाधिक ऋचाएं त्रिष्टुप छंद में हैं जिनकी संख्या ४,२५१ हैं। इसके अतिरिक्त गायत्री,जगती और अनुष्टुप छंद में भी पर्याप्त ऋचाएं हैं।

शुक्रवार, 2 जनवरी 2015

भारतीय सम्प्रदाय

सनातन भारतीय पूजा पद्धति के दो पंथ हैं-

१. शैव २. वैष्णव 3.“शाक्त”

जैसा कि नाम से स्पष्ट है भगवान शिव को अपना आराध्य मानने वाले “शैव” और भगवान विष्णु को अपना आराध्य मानने वाले “वैष्णव”।
“वैष्णव” पंथ के चार प्रमुख सम्प्रदाय हैं-
१. रामानुजाचार्य द्वारा स्थापित “श्री” सम्प्रदाय- जो “विशिष्टाद्वैत” मत को मान्यता देता है।
२. निम्बार्काचार्य द्वारा स्थापित “हंस” सम्प्रदाय- जो “द्वैताद्वैत” मत को मानता है।
३. मध्वाचार्य द्वारा स्थापित “ब्रह्म या गौड़ीय” सम्प्रदाय- जो “द्वैतवादी” है।
४. वल्लभाचार्य द्वारा स्थापित “वल्लभ” सम्प्रदाय- जो “शुद्धाद्वैत” को मान्यता प्रदान करता है।
किंतु तांत्रिक दृष्टि से वैष्णवों के १० सम्प्रदाय माने गए हैं-
१. वैखानस २.राधावल्लभ ३.गोकुलेश ४.वृन्दावनी ५.रामानन्दी ६.हरिव्यासी ७.निम्बार्क ८.भागवत ९.पान्चरात्र १०.वीर वैष्णव।
“शैव” पंथ के अन्तर्गत निम्न सम्प्रदाय प्रमुख हैं-
१. शैव २.वीर शैव ३.माहेश्वर ४.पाशुपत ५.लिंगायत ६.गाणपत्य।

भगवती देवी की आराधना करने वाले साधक  “शाक्त”  सम्प्रदाय के अंतर्गत आते हैं।