शनिवार, 3 जनवरी 2015

सात शरीर व सात चक्र

ईश्वर,परमात्मा,ब्रह्म,तत्व(जो भी नाम आप देना चाहें) से साक्षात्कार के दो ही मार्ग हैं-ध्यान और प्रेम(भक्ति)। शेष सब सामाजिक व्यवस्थाएं मात्र हैं। हमारे देश में बड़े-बड़े ध्यान योगी और भक्त हुए हैं। जिन्होंने ब्रह्म साक्षात्कार किया है। सभी ने अपने-अपने अनुभव अपने शिष्यों को बताएं भी है। सभी योगी इस बात पर एकमत है कि मानव का स्थूल शरीर ही एकमात्र शरीर नहीं है अन्य शरीर भी हैं। कोई तीन शरीरों की बात कहते हैं, कोई पांच तो कोई सात। आचार्य रजनीश “ओशो” सात शरीरों की चर्चा करते हैं। यह ज़्यादा सटीक मालूम पड़ता हैं क्योंकि कुण्डलिनी जागरण के साधक इस बात को जानते हैं कि कुण्डलिनी सात चक्रों से होकर सहस्रार तक पहुंचती हैं। “ओशो” के अनुसार हर शरीर एक चक्र से संबंधित होता है। ये सात शरीर और सात चक्र हैं-
१. स्थूल शरीर (फ़िज़िकल बाडी)- मूलाधार चक्र
२. आकाश या भाव शरीर (इथरिक बाडी)-स्वाधिष्ठान चक्र
३. सूक्ष्म या कारण शरीर (एस्ट्रल बाडी)-मणिपुर चक्र
४. मनस शरीर (मेंटल बाडी)-अनाहत चक्र
५. आत्मिक शरीर (स्प्रिचुअल बाडी)-विशुद्ध चक्र
६. ब्रह्म शरीर (कास्मिक बाडी)-आज्ञा चक्र
७. निर्वाण शरीर (बाडीलेस बाडी)-सहस्रार
 सामान्य मृत्यु में केवल हमारा स्थूल शरीर ही नष्ट होता है। शेष छः शरीर बचे रहते हैं जिनसे जीवात्मा अपनी वासनानुसार अगला जन्म प्राप्त करती है किंतु महामृत्यु में सभी छः शरीर नष्ट हो जाते हैं फ़िर पुनरागमन संभव नहीं होता। इसे ही अलग-अलग पंथों में मोक्ष,निर्वाण,कैवल्य कहा जाता है।

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