गुरुवार, 15 जनवरी 2015

“दान या निवेश....?”

मेरे देखे यदि कोई भी कर्म चाहे वो दान हो; सेवा हो या फिर भक्ति, यदि फ़ल की इच्छा और आकांक्षा से किया जा रहा है तो वह शुद्ध “निवेश” है। फल की अपेक्षा करना व्यापारिक व सांसारिक दृष्टि है, आध्यात्मिक नहीं। जिस व्यक्ति को देने में ही आनन्द महसूस होता है उसी का दान का सार्थक है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें