सोमवार, 5 जून 2017

ईश्वर को लाभ की दृष्टि से ना देखें

कल निर्जला एकादशी थी। कई श्रद्धालुओं ने निर्जल रहकर व्रत रखा अर्थात् अन्न-जल ग्रहण किए बिना उपवास। मैंने एक मित्र से पूछा कि निर्जला एकादशी का क्या महत्त्व होता है? तो उनका उत्तर था कि इस व्रत को रखने से वर्षभर की एकादशी व्रत का पुण्य प्राप्त हो जाता है। मैं आश्चर्यचकित था कि मनुष्य कितना चतुर है वह परमात्मा की भक्ति भी सांसारिक दृष्टिकोण से करता है। मेरे देखे ईश्वर को कभी लाभ की दृष्टि से नहीं देखना चाहिए। ईश्वर को सदैव प्रेम की दृष्टि से देखना चाहिए। भला ईश्वर की कृपा प्राप्ति के लिए ये हिसाब-किताब उपाय क्यों जब आपकी एक प्रेमासिक्त पुकार ही पर्याप्त है। बुद्ध को तत्व साक्षात्कार उपवास के कारण नहीं हुआ, तब हुआ जब उन्होंने ये सब व्रत त्याग दिए। ईश्वर आपके किए गए व्रतों-कर्मकाण्डों का आधीन नहीं हैं, ईश्वर तो बस आपके प्रेम के आधीन है। अत: ईश्वर के आराधन में प्रेम को प्रमुख रखिए लाभ को नहीं। यहाँ मेरा उद्देश्य किसी की श्रद्धा को आहत करना नहीं अपितु उस श्रद्धा को परिशुद्ध करना है। व्रत, पूजा, नाम जप, तीर्थयात्रा आदि में प्रेम ही केन्द्र में रहे शेष सब परिधि बन जाए तो ही भक्ति अन्यथा सब व्यापार।

-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया

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