गुरुवार, 7 जून 2018

भारतवर्ष का शास्त्रोक्त इतिहास


शास्त्रानुसार हमारी सम्पूर्ण पृथ्वी सात द्वीपों का संयुक्त स्वरूप है। ये सात द्वीप हैं-
1. कुशद्वीप
2. क्रौंचद्वीप
3. जम्बूद्वीप
4. प्लक्षद्वीप
5. शाल्मद्वीप
6. शाकद्वीप
7. पुष्करद्वीप
इन सातों द्वीपों के स्वामी अर्थात् सम्पूर्ण पृथ्वी के अधिपति महाराज अम्बरीश जो राजर्षि नाभाग के पुत्र थे। राजर्षि नाभाग वैवस्वत मनु के पुत्र थे। कालान्तर में जम्बूद्वीप के राजा हुए महाराज आग्नीध्र, जिनके नौ यशस्वी पुत्र थे-
1.नाभि (जिनका एक नाम अजनाभ भी था) 2. हरिवर्ष 3. हिरण्मय 4. केतुमाल 5. किम्पुरूष
6. इलावृत 7. रम्यक 8. कुरु 9. भद्राश्व।
महाराज आग्नीध्र ने अपने आधिपत्य वाले जम्बूद्वीप को अपने पुत्रों में बराबर-बराबर विभक्त कर दिया था। जिसमें महाराज नाभि के हिस्से वाले भूभाग को "नाभिखण्ड या अजनाभवर्ष" कहा जाने लगा। महाराज नाभि का विवाह मेरूदेवी से हुआ था। महाराज नाभि एवं मेरूदेवी की कोई सन्तान नहीं थी इसलिए उन्होंने सन्तान की कामना से एक यज्ञ किया। इस यज्ञ से प्रसन्न होकार भगवान ने स्वयं उनके यहाँ पुत्र रूप में अवतार लिया। जिसे शास्त्रों में "ऋषभ-अवतार" कहा गया। महाराज नाभि व मेरूदेवी के पुत्र भगवान ऋषभदेव का विवाह इन्द्र की कन्या जयन्ती से हुआ। भगवान ऋषभदेव व जयन्ती के सौ पुत्र हुए जिनमें ज्येष्ठ पुत्र का नाम "भरत" था। इन्हीं राजर्षि भरत के नाम पर हमारे देश का नाभ "भारतवर्ष" पड़ा। नाभिखण्ड के सदृश ही इसे "भरतखण्ड" भी कहा जाने लगा। इसका प्रमाण हमें कर्मकाण्ड व पूजा-पाठ इत्यादि के संकल्प लेते समय भी मिलता है जब संकल्प के उच्चारण में "जम्बूद्वीपे भरतखण्डे..." बोलकर संकल्प लिया जाता है। वर्तमान भारतवर्ष प्राचीन समय के जम्बूद्वीप का "भरतखण्ड" नामक भूभाग ही है।

-ज्योतिर्विद पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र
सम्पर्क: astropoint_hbd@yahoo.com                                       

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