मंगलवार, 7 अक्तूबर 2014

संस्कृत का पहला श्लोक


महर्षि वाल्मीकि के जीवन से जुड़ी एक घटना है। एक बार महर्षि वाल्मीकि एक क्रौंच पक्षी के जोड़े को निहार रहे थे. वह जोड़ा प्रेम करने में लीन था. पक्षियों को देखकर महर्षि वाल्मीकि न केवल अत्यंत प्रसन्न हुए, बल्कि सृष्टि की इस अनुपम कृति की प्रशंसा भी की. इतने में एक पक्षी को एक बाण आ लगा, जिससे उसकी जीवन -लीला तुरंत समाप्त हो गई. यह देख मुनि अत्यंत क्रोधित हुए और शिकारी को संस्कृत में कुछ श्लोक कहा. मुनि द्वारा बोला गया यह श्लोक ही संस्कृत भाषा का पहला श्लोक माना जाता है.

“मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
 यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्॥”

(अरे बहेलिये, तूने काममोहित मैथुनरत क्रौंच पक्षी को मारा है. जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं हो पायेगी)

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