गुरुवार, 2 अक्तूबर 2014

साढ़े तीन मुहूर्त

"मुहूर्त्त" अर्थात् किसी भी कार्य को करने का श्रेष्ठतम समय। शास्त्रानुसार मास श्रेष्ठ होने पर वर्ष का, दिन श्रेष्ठ होने पर मास का, लग्न श्रेष्ठ होने पर दिन का एवं मुहूर्त्त श्रेष्ठ होने पर लग्न सहित समस्त दोष दूर हो जाते हैं। हमारे शास्त्रों में शुभ मुहूर्त्त का विशेष महत्त्व बताया गया है किन्तु कुछ ऐसी तिथियाँ होती हैं जब मुहूर्त्त देखने की कोई आवश्यकता नहीं रहती ऐसी तिथियों को “अबूझ मुहूर्त्त” या “स्वयं सिद्ध मुहूर्त्त” कहते हैं। ऐसे “स्वयं सिद्ध मुहूर्त्त” की संख्या हमारे शास्त्रों में साढ़े तीन बताई गई है। आईए जानते हैं “अबूझ मुहूर्त्त” कौन से होते हैं।
१. चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा अर्थात् गुड़ी पड़वा (हिन्दू नववर्ष)
२. विजयादशमी (दशहरा)
३. अक्षय तृतीया (अखातीज)
४. कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा का आधा भाग
उपर्युक्त तिथियों को स्वयं सिद्ध मुहूर्त्त की मान्यता प्राप्त है। इन तिथियों में बिना मुहूर्त्त का विचार किए नवीन कार्य प्रारम्भ किए जा सकते हैं।

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