मंगलवार, 2 दिसंबर 2014

“खाली दिमाग; भगवान का घर”-

एक पुरानी कहावत है -“खाली दिमाग शैतान का घर”। यह बात ही गलत है। मेरे देखे “खाली दिमाग तो भगवान का घर” होता है, बशर्ते वह पूर्णरूपेण खाली हो और खाली होने की तरकीब है “ध्यान”। अक्सर लोगों के ध्यान के बारे अनेक प्रश्न होते हैं कि ध्यान क्या है; कैसे किया जाता है आदि-आदि। इन सभी प्रश्नों का एक ही उत्तर है-खाली होना। दिल से; दिमाग; विचार से सब ओर से पूर्णरूपेण हो जाना; रिक्तता। जब आप अपने इस पंचमहाभूतों से निर्मित नश्वर शरीर रूपी पात्र को खाली कर लेते हैं तब इस पात्र में परमात्मा रूपी अमृत के भरे होने की अनुभूति होती है। इस अनुभूति विद्वतजन विलग-विलग नामों से पुकरते हैं कोई ईश्वरानुभूति कहता है, कोई ब्रह्मसाक्षात्कार, कोई तत्व-दर्शन, कोई मोक्ष, कोई निर्वाण, कोई कैवल्य ये सब नामों के भेद हैं आप चाहें तो कोई नया नाम भी दे सकते हैं किंतु जो अनुभूत होता है वह निश्चय ही शब्दातीत है; अवर्णनीय है। ऐसी दिव्य अनुभूति इस जगत में सभी को हो ऐसी उस अंतर में विराजमान प्रभु से प्रार्थना है।

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