रविवार, 29 मार्च 2015

कृत्रिमता छोडें

मैं अनेक लोगों से मिला हूं, मिलकर मैंने पाया कि अधिकांश व्यक्ति जो दिखते हैं वो होते नहीं। कुछ बहुत विनम्रता का दिखावा करते हैं, कुछ निरंहारिता का, वहीं कुछ धार्मिकता का, पर जब उनके व्यक्तित्व की परत को ज़रा सा कुरेदा जाए तो ठीक विपरीत बात नज़र आती है। ओशो ऐसे व्यक्तियों के संबंध अंग्रेजी का शब्द “स्किन डीप” प्रयोग करते हैं, जिसका अर्थ होता छिछला या त्वचा की तरह पतला। मेरे देखे आप जो हैं वह पूरी प्रामाणिकता से दिखें क्योंकि अभ्यांतर के परिवर्तन से ही बाह्यांतर का परिवर्तन संभव है। मैं फ़ूलों में छिपे कांटो की अपेक्षा विशुद्ध कांटो को अधिक महत्व देता हूं। कांटों का भी अपना सौंदर्य है, उसकी भी अपनी उपयोगिता है। उसे भी गुलाब का सृजन करने वाले ईश्वर ने ही बनाया है और ईश्वर की बनाई कोई भी वस्तु बुरी नहीं होती, बुरी सिर्फ़ कृत्रिमता होती है। अतः मौलिक और प्रामाणिक बनें।

-ज्योतिर्विद हेमन्त रिछारिया

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