आध्यात्मवाणी
“ज्योतिर्विद्” पं. हेमन्त रिछारिया, प्रारब्ध ज्योतिष संस्थान
शनिवार, 4 अप्रैल 2015
सुभाषित
त्यजेदेकं कुलस्यार्थे, ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत्।
ग्रामं जनपदस्यार्थे, आत्मार्थे पृथिव्यां त्यजेत्॥
-पंचतंत्र
भावार्थ- कुल के लिए व्यक्ति को, समाज के लिए कुल को,राष्ट्र के लिए समाज को और आत्मा के लिए सारी दुनिया को त्याग देना चाहिए।
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