शनिवार, 4 अप्रैल 2015

सुभाषित

त्यजेदेकं कुलस्यार्थे, ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत्।
ग्रामं जनपदस्यार्थे, आत्मार्थे पृथिव्यां त्यजेत्॥
-पंचतंत्र

भावार्थ- कुल के लिए व्यक्ति को, समाज के लिए कुल को,राष्ट्र के लिए समाज को और आत्मा के लिए सारी दुनिया को त्याग देना चाहिए।

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