"स्वभाव" व "प्रभाव" अन्तर्संबंधित हैं, दोनों एक दूसरे जुड़े हुए हैं।
जैसा जिसका "स्वभाव" होता है; वैसा ही उसका "प्रभाव" पड़ता है। अधिकांश
व्यक्ति जीवन भर इसी प्रयास में लगे रहते हैं कि कैसे उनका "प्रभाव’ बढ़े
किन्तु इस आपाधापी में वे अपने "स्वभाव" की उपेक्षा कर देते हैं। मैं
निवेदन करूं कि अपना "स्वभाव" बदलिए आपका "प्रभाव" स्वयमेव परिवर्तित हो
जाएगा। मेरे देखे "स्वभाव" ही "प्रभाव" की कुंजी है।
-ज्योतिर्विद पं. हेमन्त रिछारिया
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