रविवार, 2 नवंबर 2014

“सबमें रब दिखता है...”

आज एक गीत के बोल सुनाई पड़े “तुझमें रब दिखता है य़ारा मैं क्या करूं.” जी चाहा कि इस गीतकार से कहूं कि अब कुछ ऐसा करो कि सबमें रब दिखने लगे। जब किसी एक में रब दिखे तो सांसारिक प्रेम, जब सबमें रब दिखने लगे तो भक्ति। हम प्रेम का प्रारंभ भले ही इस गीत के मुखड़े की तरह करें किंतु उसका पराकाष्ठा “सबमें सब दिखता है...” के रूप में ही करें। जब प्रेम इस अवस्था को प्राप्त कर लेता है तभी वह भक्ति में परिणित हो जाता है और परमात्मा हमारा प्रेमी बन जाता है।

-ज्योतिर्विद पं. हेमन्त रिछारिया

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें