शुक्रवार, 26 सितंबर 2014

"श्रद्धयां इदं श्राद्धम"

"श्रद्धयां इदं श्राद्धम"
-अर्थात अपने पूर्वजों के निमित्त श्रद्धा से किया गया कर्म ही श्राद्ध है।

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शास्त्र का मत है कि यदि कारणवश कोई व्यक्ति श्राद्ध ना कर पाए तो उसे पूर्ण श्रद्धा व भक्तिपूर्वक अपने दोनों हाथ आकाश की ओर उठाकर निम्न प्रार्थना करनी चाहिए-

“न मे·स्ति वित्तं न धनं च नान्याच्छ्राद्धपयोग्यं स्वपितृन्नतो·स्मि।
 तृष्यन्तु भक्त्या पितरो मयैतौ कृतौ भुजौ वत्मीने मारुतस्य।”

हे मेरे पितृगण! मेरे पास श्राद्ध के उपयुक्त न तो धन है, न धान्य आदि है। हां मेरे पास आपके लिए श्रद्धा व भक्ति है। मैं इन्हीं के द्वारा आपको तृप्त करना चाहता हूं। आप तृप्त हो जाएं। मैंने दोनों भुजाओं को आकाश में उठा रखा है।
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शास्त्रानुसार श्राद्ध में किसी भी ब्राह्मण को भोजन कराने की विधि नहीं है। शील, शौच, प्रज्ञावान, सदाचारी, संध्या-वन्दन करने वाला एवं गायत्री मन्त्र का जप करने वाले श्रोत्रिय ब्राह्मण को ही श्राद्ध में निमन्त्रण देना चाहिए।
"गायत्रीजाप्यनिरतं हव्यकव्येषु योजयेत्"। -(वीरमित्रोदय श्राद्धप्रकाश)
तप,धर्म,दया,दान,सत्य,ज्ञान, वेदज्ञान, कारुण्य, विद्या, विनय तथा अस्तेय (अचौर्य) आदि गुणों से युक्त ब्राह्मण ही इसका अधिकारी है।
"तपो धर्मो दया दानं स्त्यं ज्ञानं श्रुतिर्घृणा ।
विद्याविनयमस्तेयमेतद् ब्राह्मणलक्षणम्॥" -(वीरमित्रोदय श्राद्धप्रकाश)
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शास्त्रानुसार श्राद्ध में भोजन करते समय मौन रहना चाहिए। मांगने या प्रतिषेध का संकेत हाथ से ही करना चाहिए। भोजन कराते समय ब्राह्मण से भोजन कैसा है यह नहीं पूछना चाहिए तथा भोजनकर्ता को भी श्राद्धान्न की प्रशंसा या निन्दा नहीं करनी चाहिए।
"याचनं प्रतिषेधो वा कर्तव्यो हस्तसंज्ञया।
न वदेन्न च हुंकुर्यादतृप्तौ विरमेन्न च॥" - (श्राद्धदीपिका)
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श्राद्धभोक्ता के लिए निम्न आठ वस्तुओं का शास्त्रानुसार निषेध है-
१. पुनर्भोजन (एक ही समय दुबारा भोजन ना करें) २. यात्रा ३. भार ढोना ४. परिश्रम ५. मैथुन ६. दान ७. प्रतिग्रह ८. होम।
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श्राद्ध में निषिद्ध अन्न-
शास्त्रानुसार श्राद्ध में मसूर, अरहर, गाजर, कुम्हड़ा, गोल लौकी, बैंगन, शलजम, हींग, प्याज, लहसुन, काला नमक, जीरा, सिंघाड़ा, जामुन, अलसी, चना ये सब श्राद्ध में वर्जित हैं।
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श्राद्ध में लोहे का निषेध-
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श्राद्ध कर्म में लोहे के पात्रों का नहीं करना चाहिए। श्राद्ध कर्म में लोहे का निषेध है। शास्त्रों में तो पाकशाला में लौह पात्रों का निषेध है। शास्त्रानुसार लौह पात्रों ब्राह्मणों को भोजन नहीं कराना चाहिए और ना ही दान में लोहे के पात्र देने चाहिए। लौह दर्शन करते पितर निराश व रुष्ट (नाराज) होकर चले जाते हैं। श्राद्ध कर्म में सदैव सोना, चांदी, कांसा, तांबा आदि का ही प्रयोग करना चाहिए एवं दान भी इन्ही पात्रों का देना चाहिए।
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श्राद्ध में पाद-प्रक्षालन
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श्राद्ध में पाद-प्रक्षालन (पैर धुलाने) का बहुत महत्व है। ब्राह्मण भोजन से पूर्व ब्राह्मणों का पाद-प्रक्षालन किया जाना चाहिए। पाद-प्रक्षालन सदैव ब्राह्मणों को आसन पर बिठाकर करना चाहिए। खड़े-खड़े पाद-प्रक्षालन कराने से पितर रुष्ट (नाराज) होते हैं। पाद-प्रक्षालन करते समय अपनी धर्मपत्नि को अपने दाहिने ओर रखना चाहिए। धर्मपत्नि के वाम भाग में रहते पाद-प्रक्षालन करने से वह श्राद्ध आसुरी हो जाता है और पितरों को प्राप्त नहीं होता।
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श्राद्ध में चांदी की भूमिका-
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श्राद्ध में चांदी की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। चांदी का दान करने से पितर अत्यंत प्रसन्न होते हैं। शास्त्रानुसार यदि चांदी का दान ना भी कर पाएं तो केवल चांदी के विषय में चर्चा करने मात्र से पितर संतुष्ट हो जाते हैं। अत: अपनी सामर्थ्य अनुसार श्राद्ध में चांदी अवश्य दान करनी चाहिए।

-ज्योतिर्विद पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र

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