रविवार, 28 सितंबर 2014

सुभाषित


“भाग्योदये जन्तुं विशन्ति शतशः स्वयम्।
दिग्भ्योम्युपेत्य सर्वाभ्यः सायं तरूनिवाण्डजाः॥”

अर्थात् संध्या होते ही जैसे सभी पशु-पक्षी विभिन्न दिशाओं से आकर पेड़ पर रैन-बसेरा लेने पहुंच जाते हैं वैसे ही जब मनुष्य का भाग्योदय काल बनता है, तब सभी दिशाओं से विविध प्रकार की सम्पदा अनायास ही भाग्यशाली व्यक्ति के पास पहुंच जाती है।

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