शुक्रवार, 26 सितंबर 2014

नवरात्र में दुर्गा साधना


प्रत्येक वर्ष अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शक्ति की आराधना का पर्व “नवरात्र” का प्रारंभ होता है, जिसे “शारदीय नवरात्र” कहते हैं। नवरात्रि में दुर्गा पूजा विशेष महत्व होता है। अनेक स्थानों पर पांडाल सजाकर देवी की प्रतिमा स्थापित कर देवी की पूजा-अर्चना की जाती है तो कहीं केवल घट स्थापन, अखंड ज्योत व जवारे रखकर मां भगवती की आराधना की जाती है। दुर्गा पूजा “दुर्गा सप्तशती” के बिना अधूरी है। इन नौ दिनों में “दुर्गासप्तशती” के पाठ का बहुत महत्व है। कठिन साधना ना कर सकने वाले साधक मात्र मां दुर्गा के चित्र के समीप दीप प्रजवल्लित कर दुर्गासप्तशती का पाठ कर पुण्यफ़ल प्राप्त कर सकते हैं किंतु “दुर्गासप्तशती” का पाठ एक निश्चित विधि अनुसार ही किया जाना श्रेयस्कर है। आईए जानते है “दुर्गासप्तशती” के पाठ की सही विधि-
१. प्रोक्षण (अपने ऊपर नर्मदा जल का सिंचन करना)
२. आचमन
३. संकल्प
४. उत्कीलन
५. शापोद्धार
६. कवच
७. अर्गलास्त्रोत
८. कीलक
९. सप्तशती के १३ अध्यायों का पाठ (इसे विशेष विधि से भी किया जा सकता है)
१०. मूर्ती रहस्य
११. सिद्ध कुंजीका स्त्रोत
१२. क्षमा प्रार्थना

विशेष विधि-
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दुर्गा सप्तशती के १ अध्याय को प्रथम चरित्र। २,३,४ अध्याय को मध्यम चरित्र एवं ५ से लेकर १३ अध्याय को उत्तम चरित्र कहते है। जो साधक पूरा पाठ (१३ अध्याय) का पाठ एक दिन में नहीं कर सकते वे निम्न क्रम में भी इसे कर सकते हैं-
१ दिन- १ अध्याय
२ दिन- २ व ३ अध्याय
३ दिन- ४ अध्याय
४ दिन- ५.६.७.८.अध्याय
५ दिन- ९ व १० अध्याय
६ दिन- ११ अध्याय
७ दिन- १२ व १३ अध्याय
८ दिन- मूर्ती रहस्य,हवन,बलि व क्षमा प्रार्थना
९ दिन- कन्याभोज इत्यादि।
 विभिन्न लग्नों में मंत्र साधना प्रारंभ किए जाने का फल भी भिन्न-भिन्न प्रकार से प्राप्त होता है-
१. मेष लग्न- धन लाभ
२. वृष लग्न- मृत्यु
३. मिथुन लग्न- संतान नाश
४. कर्क लग्न- समस्त सिद्धियां
५. सिंह लग्न- बुद्धि नाश
६. कन्या लग्न- लक्ष्मी प्राप्ति
७. तुला लग्न- ऐश्वर्य
८. वृश्चिक लग्न- स्वर्ण लाभ
९. धनु लग्न- अपमान
१०. मकर लग्न- पुण्य प्राप्ति
११. कुंभ लग्न- धन-समृद्धि की प्राप्ति
१२. मीन लग्न- दुःख की प्राप्ति होती है।

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