सोमवार, 29 सितंबर 2014

श्रावणी उपाकर्म एवं हेमाद्रि संकल्प

वर्ष भर हुए ज्ञात अज्ञात संपूर्ण पापों के लिए प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा (रक्षाबंधन) के अवसर पर “हेमाद्रि संकल्प” एवं “श्रावणी उपाकर्म” किया जाता है। विशेष रूप से यह दोनों कर्म ब्राह्मणों के लिए अनिवार्य होते हैं। इसके अंतर्गत दशविधि (१०प्रकार के स्नान) जिसमें-
१. भस्म स्नान
२. मृतिका स्नान,
३. गोमय (गाय का गोबर) स्नान
४. पंचगव्य स्नान
५. गोरज स्नान
६. धान्य स्नान
७. फल स्नान
८. सर्वोषधि स्नान (हल्दी इत्यादि)
९. कुशोदक स्नान (कुशा के जल से)
१०.हिरण्य (स्वर्ण)
आदि से स्नानोपरांत पितृ तर्पण व सप्तऋषियों का आवाहन व पूजन किया जाता है। इसके पश्चात नवीन जनेऊ (एकाधिक जनेऊ)  का शुद्धिकरण कर उनमें से एक को धारण किया जाता है। शास्त्रोक्त मत यह है कि वर्ष में कभी जनेऊ के अशुद्ध होने पर “श्रावणी उपाकर्म” के दौरान शुद्ध व अभिमंत्रित जनेऊ से ही पुराने-अशुद्ध जनेऊ का स्थानापन्न किया जाता है। यह कर्म ब्राह्मणों के लिए अनिवार्य बताया जाता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें