सोमवार, 10 अक्तूबर 2016

परम्पराओं को रूढ़ रूप में ना मानें

आज विजयदशमी है। यह दिन विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। हम हमारी शास्त्रीय परम्पराओं को कैसे बिना जाने; बिना समझे एक रस्म अदायगी कर देते हैं इसका एक उदाहरण आज के दिन आपको घर-घर में देखने को मिलेगा जब लोग अपने वाहनों को धोकर उनकी पूजा करेंगे। कई उत्साही श्रद्धालुजन मां नर्मदा के जल में वाहनों को खड़ा कर पवित्र करने का प्रयास भी करते नज़र आएंगे लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस प्रकार वाहनों की पूजा की परम्परा का प्रारम्भ कहां से हुआ? शायद नहीं, क्योंकि शास्त्र में आज के दिन शस्त्र पूजन एवं अश्व पूजन का विधान है क्योंकि ये दोनों ही युद्ध में प्रयुक्त होते हैं। हमारा सनातन धर्म हमें कृतज्ञता ज्ञापित करना सिखाता है, प्रत्येक उस वस्तु के प्रति जिसने हमें कुछ प्रदान किया है। हम समय- समय पर उनके प्रति अपना अनुग्रह व धन्यवाद अर्पित करते हैं। चाहे वह पर्वत हों, नदियां हों, पशु हों या फ़िर यह सम्पूर्ण प्रकृति ही क्यों ना हो। मेरे देखे परम्पराओं को बिना जाने; बिना उनका भाव समझे केवल रूढ़ रूप उन्हें मानकर रस्म अदायगी कर देना सर्वथा अनुचित है।

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