रविवार, 9 अक्तूबर 2016

यज्ञ में प्रयुक्त होने वाले काष्ठ पात्र




१. स्रुवा- इसके माध्यम से यज्ञ अथवा हवन में घी की आहुति दी जाती है।
२. प्रणीता- इसमें जल भरकर रखा जाता है। इस प्रणीता पात्र के जल में घी की आहुति देने के उपरान्त बचे हुए घी को "इदं न मम.." कहकर टपकाया जाता है। बाद में इस पात्र का घृतयुक्त होठों एवं मुख से लगाया है जिसे "संसवप्राशन" कहते हैं।
३. प्रोक्षिणी- इसके माध्यम से यज्ञ अथवा हवन में वसोर्धारा (घी की धारा) छोड़ी जाती है। कुछ विद्वान यही क्रिया स्रुचि के माध्यम से भी करते हैं।
४. स्रुचि- इसके माध्यम से यज्ञ अथवा हवन में मिष्ठान की पूर्णाहुति दी जाती है। मिष्ठान की इस आहुति को "स्विष्टकृत" होम कहते हैं। यह क्रिया यज्ञ अथवा हवन में न्यूनता को पूर्ण करने के लिए की जाती है।
५. स्फ़्य- इसके माध्यम से यज्ञ अथवा हवन की भस्म धारण की जाती है।
-ज्योतिर्विद पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र

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