अभयं मित्रादभयममित्रादभयमं ज्ञातादभयं परोक्षात्।
अभयं नक्तमभयं दिवा न: सर्वा आशामममित्र भवन्तु॥
-अर्थववेद, १९.१५.६
अभयं नक्तमभयं दिवा न: सर्वा आशामममित्र भवन्तु॥
-अर्थववेद, १९.१५.६
अर्थ-मुझे मित्र या शत्रु का भय न हो, मुझे ज्ञात और अज्ञात का भी भय न हो, रात और दिन का भी भय न हो। पूर्व,पश्चिम,उत्तर,दक्षिण सभी दिशाएँ मेरे प्रति मित्रवत् भाव रखें।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें