सोमवार, 3 अक्तूबर 2016

ब्राह्मणों के प्रकार



 ब्राह्मण के आठ भेदों का वर्णन इस प्रकार है
मात्र, ब्राह्मण, श्रोत्रिय, अनुचान, भ्रूण, ऋषिकल्प, ऋषि और मुनिये आठ प्रकार के ब्राह्मण बताये गए हैं इनमें विद्या और सदाचार की विशेषता से पूर्व की अपेक्षा उत्तरोत्तर श्रेष्ठ हैं

जिसका जन्म मात्र ब्राह्मण कुल में हुआ है, वह जब जाति मात्र से ब्राह्मण हो कर ब्राह्मणोचित उपनयन संस्कार तथा वैदिक कर्मों से हीन रह जाता है, तब उसकोमात्रऐसा कहते हैं जो एक उद्देश्य को त्याग करव्यक्तिगत स्वार्थ की उपेक्षा करके वैदिक आचार का पालन करता है, सरल एकान्तप्रिय, सत्यवादी तथा दयालु है, उसेब्राह्मणकहा गया है जो वेद  की किसी एक शाखा को कल्प और छहों अंगो सहित पढ़कर ब्राह्मणोचित छह कर्मों में सलंग्न रहता है, वह धर्मज्ञ विप्रश्रोत्रियकहलाता है जो वेदों और वेदांगों का तत्वग्य, पापरहित, शुद्ध चित्त, श्रेष्ठ, श्रोत्रिय विद्यार्थियों को पढ़ाने वाला और विद्वान है, वहअनुचानमाना गया है

जो अनुचान के समस्त गुणों से युक्त होकर केवल यज्ञ और स्वाध्याय में ही संलग्न रहता है, यग्याशिष्ठ भोजन करता है और इन्द्रियों को अपने वश में रखता है, ऐसे ब्राह्मण को श्रेष्ठ पुरुषभ्रूणकहते हैं जो सम्पूर्ण वैदिक और लौकिक विषयों का ज्ञान प्राप्त करके मन और इन्द्रियों को वश में रखते हुए सदा आश्रम में निवास करता है, वहऋषिकल्पमाना गया है जो पहले नैष्ठिक ब्रह्मचारी होकर नियमित भोजन करता है, जिसको किसी भी विषय में कोई संदेह नहीं है तथा जो श्राप और अनुग्रह में समर्थ और सत्यप्रतिज्ञ हैं, ऐसा ब्राह्मणऋषिमाना गया है जो निवृति मार्ग में स्थित, सम्पूर्ण  तत्वों का ज्ञाता, काम-क्रोध से रहित, ध्याननिष्ठ, जितेन्द्रिय तथा मिटटी और सुवर्ण को समान समझने वाला है, ऐसे ब्राह्मण कोमुनिकहते हैं इस प्रकार वंश, विद्या और सदाचार से ऊंचे उठे हुए ब्राह्मणत्रिशुक्लकहलाते हैं ये ही यज्ञ आदि में पूजे जाते हैं   इस प्रकार आठ भेदों  वाले ब्राह्मण का वर्णन किया गया है
-स्कंद पुराण

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