मंगलवार, 11 अक्तूबर 2016

देवी विसर्जन का महत्त्व-

हमारे सनातन धर्म में हर पर्व का एक ख़ास महत्त्व होता है। देवी विसर्जन या गणेश विसर्जन का भी बहुत गूढ़ अर्थ है। देवी या गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन हमारी साधना की प्रगति को इंगित करता है। जब साधना का प्रथम चरण होता है तब हमें किसी ना किसी आधार की; किसी ना किसी अवलम्बन की आवश्यकता होती है किन्तु जब साधना की पूर्णता होनी होती है तब हमें सारे आधार गिराने होने होते हैं, सारे आकार विसर्जित करने पड़ते हैं तभी हम उस निराकार को जान पाते हैं। निराकार से मेरा तात्पर्य है जिसका कोई एक निश्चित आकार ना हो अपितु सारे आकर उसी के हों, वही सच्चे अर्थों में निराकार है। यह विसर्जन की क्रिया उसी का संकेत मात्र है कि जिस देवी प्रतिमा की हमने इतने दिनों तक साकार रूप में पूजा की अन्तिम दिन उसी आकार को जाकर विसर्जित कर समष्टि से एकाकार कर आए। पहले सिर्फ़ एक प्रतिमा हमारे लिए आराध्य थी किन्तु विसर्जन के पश्चात पूरी स्रष्टि ही हमारे लिए परमात्मा की प्रतिमा का प्रकट स्वरूप बन कर आराध्य हो जाती है। मेरे देखे जब क्षुद्र मिटता है तभी विराट मिलता है।
-ज्योतिर्विद पं. हेमन्त रिछारिया

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