शनिवार, 15 अक्तूबर 2016

गुरु वन्दना

राम तजूं पै गुरु न बिसारूं।
गुरु को सम हरि को न निहारूं॥
हरि ने जनम दियो जग माहीं।
गुरु ने आवागमन छुटाहीं॥
हरि ने पांच चोर दिए साथा।
गुरु ने लई छुटाय अनाथा॥
हरि ने कुटुम्ब जाल में गेरी।
गुरु ने काटी ममता बेरी॥
हरि ने रोग भोग उरझायौ।
गुरु जोगी कर सबै छुटायौ॥
हरि ने कर्म धर्म भरमायौ।
गुरु ने आतम रूप लखायौ॥
हरि ने मोसूं ने आप छिपायौ।
गुरु दीपक दै ताहि दिखायौ॥
फिर हरि बंधि मुक्ति गति लाए।
गुरु ने सबही भरम मिटाए॥
चरणदास पर तन मन वारूं।
गुरु न तजूं हरि को तज डारूं॥
- संत सहजोबाई

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